Saturday, August 20, 2011

nishabd si woh raat...

रात के अँधेरे से की थी एक बात,
कब जाने दिल छोड़ा था साथ;
एक आधे चाँद ने था मुस्कुराया
तुम्ही को तो मैं खो कर आया ।

रात के अँधेरे से की थी फिर एक बात,
सुबह तक क्या थामोगे मेरा हाथ ;
आज किसी मोड़ पे चांदनी खो गयी
शायद सुबह की रौशनी में वो भी समां गयी


रात है कल फिर आएगी,
निशब्द होकर खो जायेगी;
रौशनी की पहली किरण से ,
निशान तक मिट जायेगी ;
चांदनी भी शर्मा के चली जाएगी,
रौशनी की लहर में फिर समां जायेगी,
अँधेरी रात की पलों में यही तो थी
कही जो मैंने छोटी सी वो बात

No comments:

Post a Comment